लखनऊ में डॉ अम्बेडकर पार्क (सामाजिक परिवर्तन स्थल) का काम अपने आखरी चरण में था, उद्घाटन की तारीख नजदीक थी , तत्कालीन मुख्यमंत्री मां• मायावती जी पल-पल की अपडेट उच्चाधिकारियों से ले रही थी, तभी वहां कुछ लोग आए जो वहां फर्नीचर संबंधी काम देख रहे थे। डॉ अम्बेडकर पार्क के विजिटर ऑफिस में कुछ सोफे वगैरह डालने थे।
उन्होंने फाइल नुमा कई बुकलेट बहन जी को दिखाई और बताए कि बहन जी यह एक सोफा 10000 हजार रुपए का है, यह दूसरा सोफा 15000 रुपए का है और ये 25000 रुपए का है। बहन जी उस व्यक्ति को ऊंची आवाज में कहा कि सबसे अच्छा और महंगा सोफा इस विजिटर ऑफिस में डालना चाहिए मैं खुद आकर देखूंगी। यहां मेरे बहुजन समाज के लोग आकर बैठेंगे।

बहन जी ने जिन आम लोगों को एक सामाजिक स्थल में लाखों के सोफे पर बिठा दिया, आज उसी समाज के बहके हुए लोग कान पकड़कर थाना परिसर में बैठे हैं। मान्यवर साहब जिस समाज को हुक्मरान बनाना चाहते थे उसी समाज को कुछ बहरूपिए लोगों ने कान पकड़वाकर थाना परिसर में बिठा दिया। कितना शर्मनाक दृश्य है.
